पानीपत की तीसरी लड़ाई – कारण , परिणाम, इतिहास और प्रभाव

पानीपत की तीसरी लड़ाई – कारण , परिणाम, इतिहास और प्रभाव

पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई थी ?

प्रस्तावना(Preface)-:

पानीपत की तीसरी कब हुई थी ?
पानीपत की तीसरी लड़ाई 

पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी 1761 को पानीपत के मैदान में अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेना के सेनापति सदाशिव राव भाऊ के सेना के बीच लड़ी गई लड़ाई को पानीपत की तीसरी लड़ाई कहा जाता है |  इस युद्ध में गार्दी सेना प्रमुख इब्राहीम ख़ाँ गार्दी ने मराठों का साथ दिया तथा दोआब के अफगान रोहिला और अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया।यह लड़ाई 18वीं सदी की सबसे भयानक लड़ाइयों में एक थी। एक ही दिन में दोनों ताकतवर सेना के बीच भिड़ंत में बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए थे।अफगान लड़ाकों ने मराठा के सामने रोहिल्ला लड़ाकों को खड़ा किया था|

 

 

पानीपत की तीसरी लड़ाई कहाँ हुई थी ?

पानीपत(panipat)-:

पानीपत की तीसरी लड़ाई पानीपत के मैदान में हुई थी | पानीपत, हरियाणा में पड़ने वाला छोटा सा जिला है, जो करनाल लोकसभा के अंतर्गत आता हैं और देश विदेश में में अपने हैंडलूम के लिए प्रसिद्ध है। मात्र 56 km² क्षेत्रफल में फैले इस जिले में 3 ऐसे युद्ध लड़े गए, जिन्होंने भारत का इतिहास बदल दिया। यहां सन् 1526, 1556 और 1761 में तीन महत्वपूर्ण युद्ध लड़े गए थे।इन सभी लड़ाइयों का इतिहास में अपना-अपना महत्त्व है, हम आपको 1761, की लड़ाई के बारे में बताएँगे जिसका महत्त्व इतिहास के पन्ने में अलोचना की गई है|

पानीपत की तीसरी लड़ाई क्यों महत्वपूर्ण है ?

पानीपत युद्ध की पृष्ठभूमि(Background of Panipat War)-:
” पानीपत की तीसरी लड़ाई” इसलिए  महत्वपूर्ण है कि इस लड़ाई के बाद मुगलों का या मुग़ल साम्राज्य का अंत (1737 – 1857) में शुरु हो गया था, जब मुगलों के ज्यादातर भू भागों पर मराठों का आधिपत्य हो गया था। 1739 में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया। 1757 ईस्वी में रघुनाथ राव ने दिल्ली पर आक्रमण कर दुर्रानी को वापस अफ़गानिस्तान लौटने के लिए विवश कर दिया तत्पश्चात उन्होंने अटक और पेशावर पर भी अपने थाने लगा दिए। अहमद शाह दुर्रानी को ही नहीं अपितु संपूर्ण उत्तर भारत की शक्तियों को मराठों से संकट पैदा हो गया जिसमें अवध के नवाब सुजाउद्दौला और रोहिल्ला सरदार नजीबउद्दोला भी सम्मिलित थे।

अहमद शाह दुर्रानी जो कि दुर्रानी साम्राज्य का संस्थापक था और 1747 में राज्य का सुल्तान बना था। सभी ने अहमदशाह को भारत में आने का न्योता दिया। जब यह समाचार मराठों के पास पंहुचा तो 1757 को पेशावर में दत्ताजी सिंधिया, जिन्हें पेशवा बालाजी बाजीराव ने वहाँ पर नियुक्त किया था उन्होंने कार्रवाई की परंतु अफगान सेना और शूजाउद्दौला आदि ने यह धोखे से मार दिया ।

उस वक्त सदाशिव राव भाऊ जो की पानीपत के युद्ध के नायक थे, उदगीर में थे जहाँ पर उन्होंने 1759 में निजाम की सेनाओं को हराया था जिसके बाद उनके ऐश्वर्य में काफी वृद्धि हुई और वह मराठा साम्राज्य की सबसे ताकतवर सेनापति में गिने जाने लगे। इसलिए बालाजी बाजी राव ने अहमदशाह से लड़ने के लिए भी उन्हें ही चुना।

अफ़गानों की कुंजपुरा में हार(Defeat of Afghans at Kunjpura)-:
कुंजपुरा हरियाणा के करनाल जिला में पड़ता है जो यमुना नदी के किनारे बसा छेत्र है, सदाशिवराव भाऊ अपनी समस्त सेना को उदगीर से लेकर सीधे दिल्ली की ओर रवाना हो गए जहाँ वे लोग 1760 ईस्वी में दिल्ली पहुंचे। उस वक्त अहमद शाह अब्दाली दिल्ली पार करके अनूप शहर यानी दोआब में पहुँच चुका था और वहाँ पर उसने अवध के नवाब सुजाउदौला और रोहिल्ला सरदार नजीबउद्दौला ने उसको रसद पहुंचाने का काम किया।
इधर जब मराठे दिल्ली में पहुंचे तो उन्होंने लाल किला जीत लिया जिसके बाद उन्होंने कुंजपुरा के किले पर हमला कर दिया । कुंजपुरा में अफगान को पूरी तरह तबाह करके उनसे सभी सामान और खाने-पीने की आपूर्ति मराठों को हो गई । मराठों ने लाल किले की चांदी की चादर को भी पिघला कर उससे भी धन अर्जित कर लिया ।

पानीपत की तीसरी लड़ाई क्यों हुई थी ?

युद्ध(War)-:

पानीपत की तीसरी लड़ाई क्यों हुई थी ?
पानीपत की तीसरी लड़ाई क्यों हुई थी ?

उस वक्त मराठों के पास उत्तर भारत में दिल्ली ही धनापूर्ति का एकमात्र साधन थी परंतु बाद में अब्दाली को रोकने के लिए यमुना नदी के पहले उन्होंने एक सेना तैयार की थी,परंतु अहमदशाह ने नदी पार कर ली । अक्टूबर के महीने में और किसी गद्दार की गद्दारी की वजह से मराठों कि वास्तविक जगह और स्तिथी का पता लगाने में सफल रहा ।

जब मराठों कि सेना वापिस मराठवाड़ा जा रही थी तो उन्हें पता चला कि अब्दाली उनका पीछा कर रहा है, तब उन्होंने युद्ध करने का निश्चय किया। अब्दाली ने दिल्ली और पुणे के बीच मराठों का संपर्क काट दिया । मराठों ने भी अब्दाली का संंपर्क काबुल से काट दिया। इस तरह तय हो गया था कि जिस भी सेना को पूर्ण रूप से अन्न जल की आपूर्ति होती रहेगी वह युद्ध जीत जाएगी ।

करीब डेढ़ महीने की मोर्चा बंदी के बाद 14 जनवरी सन् 1761 को बुधवार के दिन सुबह 8:00 बजे यह दोनों सेनाएं आमने-सामने युद्ध के लिए आ गई ।

मराठों को रसद की आमद हो नहीं रही थी और उनकी सेना में भुखमरी फैलती जा रही थी, परंतु अहमदशाह को अवध और रूहेलखंड से रसद की आपूर्ति हो रही थी ।

विश्वासराव को करीब 1:00 से 2:30 के बीच एक गोली शरीर पर लगी और वह गोली इतिहास को परिवर्तित करने वाली साबित हुई । जब सदाशिवराव भाऊ अपने हाथी से उतर कर विश्वासराव को देखने के लिए मैदान में पहुंचे तो उन्होंने विश्वासराव को मृत पाया ।

इधर जब बाकी मराठा सरदारों ने देखा कि सदाशिवराव भाऊ अपने हाथी पर नहीं है तो पूरी सेना में हड़कंप मच गया, जिससे सेना का कमान ना होने के कारण पूरी सेना में अफरा तफरी मच गई और सारे सैनिक भागने लगे । इसी भगदड़ में कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए परंतु भाऊ सदाशिवराव अपनी अंतिम श्वास तक लड़ते रहे ।

इस युद्ध में शाम तक आते-आते पूरी मराठा सेना खत्म हो गई । अब्दाली ने इस मौके को एक सबसे अच्छा मौका समझा और 15000 सैनिक जो कि आरक्षित थे उनको युद्ध के लिए भेज दिया और उन 15000 सैनिकों ने बचे-खुचे मराठा सैनिक जो सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में थे उनको खत्म कर दिया ।

मल्हारराव होळकर वहाँ से पेशवा के वचन के कारण साथ गई 20 मराठा स्त्रियों को युद्ध से सुरक्षित बडी ही कूटनीति से निकालकर लाए । सिंधिया और नाना फडणवीस भी यहाँ से भाग निकले । उनके अलावा और कई महान सरदार जैसे विश्वासराव पेशवा, सदाशिवराव भाऊ तथा जानकोजी सिंधिया भी इस युद्ध में मारे गए । इब्राहिम खान गार्दी जो कि मराठा तोपखाने की कमान संभाले हुए थे उनकी भी इस युद्ध में बहुत बुरी तरीके से मौत हो गई और कई दिनों बाद सदाशिवराव भाऊ और विश्वासराव का शरीर मिला ।

इस युध पूरी तरह से मराठा सेना वीरगति को प्राप्त हुई इस युद्ध में लगभग, 60000 से 70000 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए, युद्ध में दोनों ओर की सैनिक मरे गए मराठा सेना यह युद्ध हार गई |

पानीपत के तीसरी लड़ाई के बाद क्या हुआ था ?

युद्ध के बाद क्या हुआ(What happened after the war)-:
यह बात जब पुणे पहुंची तब बालाजी बाजीराव के गुस्से का ठिकाना नहीं रहा और वह बहुत बड़ी सेना लेकर पानीपत की ओर चल पड़े । जब अहमद शाह दुर्रानी को यह खबर लगी तो उसने खुद को रोक लेना ही सही समझा क्योंकि उसकी सेना में भी हजारों का नुकसान हो चुका था, और वह सेना जो अभी नहीं लड सकती थी । इसलिए उसने 10 फरवरी,1761 को पेशवा को पत्र लिखा कि “मैं जीत गया हूँ लेकिन दिल्ली की गद्दी नहीं लूगा, आप ही दिल्ली पर राज करें मैं वापस जा रहा हूँ।”

अब्दााली का भेजा पत्र बालाजी बाजीराव ने पत्र पढ़ा और वापस पुणे लौट गए । परंतु थोड़े में ही 23 जून 1761 को मानसिक अवसाद के कारण उनकी मृत्यु हो गई, क्योंकि इस युद्ध में उन्होंने अपना पुत्र और अपने कई मराठा सरदारों को खो दिया था ।

मराठों का पुनरुत्थान(Resurgence of the Marathas)-:

1761 में माधवराव द्वितीय पेशवा बने और उन्होंने महादाजी सिंधिया और नाना फडणवीस की सहायता से उत्तर भारत में अपना प्रभाव फिर से जमा लिया । 1761 से 1772 तक उन्होंने वापस रोहिलखंड पर आक्रमण किया और नजीबउद्दौला के पुत्र को भयानक रूप से पराजित किया ।

इस युद्ध में मराठी ने पूरे रोहिल्लखंड को ध्वस्त कर दिया तथा नजीबउद्दौला कब्र को भी तोड़ दिया । संपूर्ण भारत पर एक बार फिर मराठा परचम फैल गया और उन्होंने दिल्ली में फिर से मुगल सम्राट शाह आलम को राजगद्दी पर बैठाया और पूरे भारत पर शासन करना फिर से प्रारंभ कर दिया ।

महादाजी सिंधिया और नाना फडणवीस का मराठा पुनरुत्थान में बहुत बड़ा योगदान है और माधवराव पेशवा की वजह से ही यह सब हो सका । इस प्रकार मराठा साम्राज्य का पुनरुत्थान हुआ और कालांतर में मराठों ने ब्रिटिश को भी पराजित किया और सालाबाई की संधि की ।

पानीपत की तीसरी लड़ाई को भारतीय इतिहास ”काला दिन” क्यों कहा जाता है ?

आधुनिक इतिहास की दृष्टि से(from the point of view of modern history)-:

पानीपत की तीसरी लड़ाई
पानीपत की तीसरी लड़ाई

पानीपत का युद्ध भारत के इतिहास का सबसे काला दिन रहा। और इसमें कई सारे महान सरदार मारे गए जिस देश के लिए लड़ रहे थे और अपने देश के लिए लड़ते हुए सभी श्रद्धालुओं की मौत हो गई इसमें सदाशिवराव भाऊ, शमशेर बहादुर, इब्राहिम खान गार्दी, विश्वासराव, जानकोजी सिंधिया की भी मृत्यु हो गई।इस युद्ध के बाद खुद अहमद शाह दुर्रानी ने मराठों की वीरता को लेकर उनकी काफी तारीफ की और मराठों को सच्चा देशभक्त भी बताया।

इस युद्ध में मराठा के लगभग सभी छोटे-बड़े सरदार मारे गए इस संग्राम पर टिप्पणी करते हुए जे.एन.सरकार जादुनाथ सरकार ने लिखा है इस देशव्यापी विपत्ति में संम्भवत महाराष्ट्र का कोई ऐसा परिवार ने होगा जिसका कोई न कोई सदस्य इस युद्ध में मारा न गया हो । इस कारण इस युद्ध को काला दिन कहा गया मराठो ने इस युद्ध में बहुत संघर्ष किया पर विश्वास राव के मौत हो जाने के कारण सेना में उचल कूद बढ़ गया जिससे सेना दौड़ने लगी और इसी उचल कूद के कारण बहुत सी मराठा सेना वीरगति को प्राप्त हो गई |

 

 

 

पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठो के पराजय के कारण क्या थे ?

मराठो के पराजय के कारण(Reasons for the defeat of Marathas)-:
मराठा सेनापति सदाशिवराव के पास प्रारम्भ से ही धन का अभाव था। उनके पास एक विशाल सेना के लिए पर्याप्त भोजन सामग्री नहीं थी।
इस युद्ध में मराठों की राजपूतों, जाटों और सिखों को अपनी तरफ से लड़ने के लिए राजी कर पाने में असमर्थता घातक साबित हुई।
अफगानों को रोहिलखण्ड के नवाब और अवध के नवाब से आर्थिक और सैनिक सहायता मिल गई थी। उसे भोजन सामग्री की इतनी कठिनाई नहीं उठानी पड़ी जितनी मराठों को। उसने अपनी सेना की सहायता से मराठों की भोजन सामग्री आने के सभी मार्ग बंद कर दिए।
इस युद्ध के दौरान मराठों की सेना में अनुशासन की कमी थी। इंदौर के महाराज मल्हारराव होल्कर व ग्वालियर के महाराज सिन्धिया के भाऊ साहिब से अच्छे सम्बन्ध नहीं थे। मल्हारराव होल्कर ने पानीपत के मैदान में सुस्ती दिखाई और जब मराठों की हार हुई, तो अपनी सेना सहित भाग गया। वहीं अहमदशाह अब्दाली की सेना में कड़ा अनुशासन था।
मराठों की पराजय का एक कारण तो यही माना जाता है कि पेशवा बालाजी बाजीराव ने रघुनाथ राव, महादजी सिंधिया अथवा मल्हार राव होलकर के बदले भाऊ सदाशिवराव को सेनापति बना कर भेजा । जबकि उपर्युक्त तीनों ही उस समय उत्तर भारत में मराठा सेना का नेतृत्व करने में सक्षम थे,
अफगानों की रण पद्धति भी मराठों से बहुत अच्छी थी। और उनके पास बहुत ज्यादा मात्रे में अधिक तोप खाने थी जोबहुत ही मजबूत तरीके व उनको नई पद्धति से बनाई थी |

पानीपत की तीसरी लड़ाई के क्या प्रभाव पड़े थे ?

प्रभाव(Efect)-:

.मराठों की दुर्गति
.अहमदशाह की अन्तिम विजय
.नानासाहेब की मृत्यु
.मुगलों की दुर्दशा
.अंग्रेजों के प्रभाव में वृद्धि
.सिख सत्ता की स्थापना
.हैदर अली का उदय
.माधवरा

पानीपत की तीसरी लड़ाई किसने जीता था ?

पानीपत की तीसरा लड़ाई अहमद शाह अब्दाली व मराठों के बीच 14जनवरी1761को सुबह 8:00बजे लङा गया जिसमे अहमद शाह अब्दाली की जीत हुई। परन्तु इसके बाद मराठो ने पुन्हा संघर्ष करके मुगलों का साम्राज्य ही ख़त्म कर दिया क्योकि मराठो ने आत्मविश्वास नहीं हारा था भले ही इस पानीपत की तीसरी लड़ाई को हार गए हो लेकिन उनके पुन्हा संघर्ष से जीत हासिल की |

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