हल्दीघाटी का युद्ध – महाराणा प्रताप और अकबर की ऐतिहासिक कहानी”

हल्दीघाटी का युद्ध – महाराणा प्रताप और अकबर की ऐतिहासिक कहानी”

हल्दीघाटी का युद्ध कब हुआ था ?

हल्दीघाटी का युद्ध(Battle of haldighati)-:

हल्दीघाटी का युद्ध
हल्दीघाटी का युद्ध

हल्दीघाटी का युद्ध दो महापुरषों के बीच हुवा,  एक और मुग़ल सम्राट अकबर और दूसरी और मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप यह युद्ध 18 जून से लेकर 21 जून 1576 तक चला इस युद्ध में मुगलिया सेना के सेनापति आमेर के राजा मानसिंह प्रथम थे| मानसिंह के फूफा अकबर थे|  मानसिंह के नेरत्व में सह्जादा सलीम व अन्य सरदार थे|   और आप जानते है कि , सह्जादा सलीम मुगल सम्राट का चौथा शासक हुआ था | जो आगे चलके बादशाह जहागीर के नाम से प्रसिद्ध हुवा|

मेवाड़ की और से मेवाड़ी सेना और अफगानी सेना का नेतृत्व हकीम खान सूरी कर रहा था | क्योकि वह मेवाड़ी सेना का सेनापति था | मेवाड़ी सेना में मेवाड़ी सेना में अनेको राजपूतों, सरदारों, अफगानों, व महाराणा प्रताप के भाई कुवर शक्ति सिंह और आचार्य राघवेन्द्र आदि थे |
मुगलिया सेना,  मेवाड़ी सेना से चार गुना अधिक थी|  फिर भी टकरार बराबर का था क्योकि मेवाड़ी सेना झुझारू और  संघर्षी थी | प्रताप का घोडा चेतक भी इस हल्दीघाटी युद्ध में एक विशाल काय पत्थर की तरह सभी मेवाड़ी सेना और महाराणा प्रताप की जान बचाने के लिए स्वयं वीरगति को प्राप्त हुआ था |

हल्दीघाटी का युद्ध क्यों हुआ था ?

1568 में चित्तौड़गढ़ की विकट घेराबंदी ने मेवाड़ की उपजाऊ पूर्वी बेल्ट को मुगलों को दे दिया था। हालाँकि, बाकी जंगल और पहाड़ी राज्य अभी भी राणा प्रताप के नियंत्रण में थे। मेवाड़ के माध्यम से अकबर गुजरात के लिए एक स्थिर मार्ग हासिल करने पर आमादा था; लेकिन महाराणा प्रताप की प्रबल शक्ति के कारण कभी आगे नहीं बढ़ पाया जब 1572 में राणा प्रताप का अभिषेक हुआ , तो अकबर ने कई दूतों को भेजा, और महाराणा प्रताप को इस क्षेत्र के कई अन्य राजपूत नेताओं की तरह एक जागीरदार बनाने का प्रस्ताव दिया। लेकिन महाराणा प्रताप ने अकबर के प्रस्ताव को व्यक्तिगत रूप से  मना कर दिया तो युद्ध अनिवार्य हो गया। लड़ाई का स्थल राजस्थान के गोगुन्दा के पास हल्दीघाटी में एक संकरा पहाड़ी दर्रा था।

18 जून 1576 को महाराणा प्रताप ने लगभग 1900 घुड़सवारों,पैदलों एवं 1,000 भील धनुर्धारियों के बल को मैदान में उतारा। दूसरी ओर मुगलों का नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह ने किया था, जिन्होंने लगभग 5,000 योद्धाओं की सेना की कमान संभाली थी। इस भयंकर युद्ध में मुग़ल सेना की जीत हुई पर राणाप्रताप ने हार नहीं मानी उन्होंने ने अपने आप को पराजित नहीं समझा और इस युद्ध ने इतिहास के पन्नो में अपना नाम दर्ज करा लिया|

एक बार पुन्हा राणाप्रताप ने युद्ध किया यह1583 की विजयादशमी को प्रताप ने दिवेर में मुगल सेना पर निर्णायक आक्रमण करके मुगलों को बुरी तरह पराजित किया और उसे मेवाड़ से स्थाई रूप से खदेड़ दिया। सभी 36 स्थानों से मुगल सैनिक भाग खड़े हुए। इस युद्ध में राणाप्रताप का पुत्र कुवर अमर सिंह ने मुगल सेनापति पर भाले से इतना जोरदार प्रहार किया कि उसे भेदते हुए भाला जमीन में धंस गया। दिवेर युद्ध में 36000 की मुगल सेना से प्रताप और अमर सिंह के आगे आत्मसमर्पण कर दिया।

अकबर कौन थे (who was Akbar)?

हल्दीघाटी का युद्ध
अकबर 

अकबर हुमायु का पुत्र था अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को अमरकोट में हुवा था अमरकोट में होने का कारण था कि हुमायु शेरसाह सूरी से युद्ध में हारकर भाग रहा था | और वह भागते – भागते अमरकोट के राजा पार्षद के यहाँ पहुंचा, और राजा पार्षद ने शेरशाह सूरी को आश्रय दिया था |

 

 

 

 

महाराणा प्रताप कौन थे (who was Maharanapratap)?

हल्दीघाटी का युद्ध
महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप राणा उदयसिंह व महरानी जयंताबाई के पुत्र थे इनका जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ किले के बादल महल में हुवा था वे बचपन से ही शक्तिशाली व तेजस्वी थे उन्होंने बचपन में ही कई जंग लादे और जीते, उनका विवाह अजबदी नाम की कन्या से हुवा और उन्ही का पुत्र कुवर अमर सिंह थे|

 

 

 

 

प्रस्तावना(Preface)-:

राणा प्रताप, जो कुंभलगढ़ के रॉक-किले में सुरक्षित थे, ने उदयपुर के पास गोगुन्दा शहर में अपना आधार स्थापित किया। अकबर ने अपने कबीले के वंशानुगत विरोधी, मेवाड़ के सिसोदिया के साथ युद्ध करने के लिए कछवा, मान सिंह की प्रतिनियुक्ति की। मान सिंह ने मांडलगढ़ में अपना आधार स्थापित किया, जहाँ उन्होंने अपनी सेना जुटाई और गोगुन्दा के लिए प्रस्थान किया। गोगुन्दा के उत्तर में लगभग 14 मील (23 किमी) की दूरी पर खमनोर गाँव स्थित है, जिसकी चट्टानों के लिए “हल्दीघाटी” नामक अरावली पर्वतमाला के एक भाग से गोगुन्दा को अलग किया गया था, जिसे कुचलने पर हल्दी पाउडर (हल्दी) जैसा दिखने वाला एक चमकदार पीला रंग का उत्पादन होता था। राणा, जिसे मान सिंह के आंदोलनों से अवगत कराया गया था, को मान सिंह और उसकी सेनाओं की प्रतीक्षा में हल्दीघाटी दर्रे के प्रवेश पर तैनात किया गया था। युद्ध 18 जून 1576 को सूर्योदय के तीन घंटे बाद शुरू हुआ जो कि 21 जून 1576 तक चला।

युद्ध की पृष्ठभूमि(battle of Background)-:

हल्दीघाटी का युद्ध अकबर के सिंहासनारूढ़ होने और अपने अधीन सभी राजपूत राज्यों को हड़पने के प्रयास की पृष्ठभूमि में लड़ा गया था। हल्दीघाटी के युद्ध केअनेक कारण थे

अकबर की रणनीति: सम्राट अकबर ने राजस्थान के एक प्रमुख राज्य मेवाड़ को छोड़कर अधिकांश राजपूत राज्यों के साथ मजबूत गठबंधन बनाया।
चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी: मेवाड़ के राणा उदय सिंह द्वितीय ने मुगल सम्राट अकबर के अधीन होने से इनकार कर दिया, जिसके कारण 1568 में चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी हुई , जिसके परिणामस्वरूप मेवाड़ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मुगलों के हाथों में चला गया।
महाराणा प्रताप का उत्तराधिकार: जब 1572 में महाराणा प्रताप को अपने पिता उदय सिंह द्वितीय से मेवाड़ की गद्दी विरासत में मिली, तो अकबर ने महाराणा प्रताप को मुगल शासन का सहयोगी बनने और मुगलों और राजपूत राज्यों के बीच चल रहे संघर्ष को सुलझाने के लिए राजी करने हेतु कई राजनयिक मिशन भेजे।
राजनीतिक मिशनों की विफलता: जलाल खान कुर्ची, अंबर के मान सिंह, राजा भगवंत दास और टोडरमल के अधीन अकबर के सभी राजनीतिक मिशन विफल हो गए, जिसके परिणामस्वरूप हल्दीघाटी का युद्ध हुआ।

हल्दीघाटी युद्ध के कारण क्या थे ?

हल्दीघाटी युद्ध के कारण(Reasons for the battle of Haldighati)-:

हल्दीघाटी का युद्ध कई कारणों से हुआ। इन कारणों में महाराणा प्रताप द्वारा मुगल सत्ता को अस्वीकार करना, अकबर के राजनयिक मिशनों की विफलता, मेवाड़ के साथ एक लाभदायक व्यापार मार्ग, राजपूतों और मुगलों के बीच ऐतिहासिक रूप से शत्रुतापूर्ण संबंध आदि शामिल हैं।
मुगल सत्ता का परित्याग: हल्दीघाटी के युद्ध का मुख्य कारण महाराणा प्रताप द्वारा मुगल सम्राट अकबर की सत्ता को अस्वीकार करना था। अकबर सभी राजपूत राज्यों को अपने नियंत्रण में लाकर मुगल सत्ता को मजबूत करना चाहता था।
लाभदायक व्यापार मार्ग: अकबर मेवाड़ से गुजरात तक एक आवश्यक और स्थिर व्यापार मार्ग स्थापित करने के लिए दृढ़ था, लेकिन महाराणा प्रताप ने संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
शत्रुतापूर्ण संबंध: मुगलों और महाराणा प्रताप के बीच संबंध पहले से ही तनावपूर्ण थे, क्योंकि 1568 में अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी जैसी लड़ाइयां हुई थीं।

हल्दीघाटी युद्ध की घटनाये(Events of the battle of Haldighati)-:

हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को महाराणा प्रताप की मेवाड़ सेना और मान सिंह प्रथम के नेतृत्व वाली मुगल सेना के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध वीरता, दृढ़ संकल्प, पराक्रम और रणनीतिक वापसी का प्रतीक था। यह मुगल-राजपूत इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। विभिन्न घटनाओं का सारांश इस प्रकार है

मुगलों की योजनाबद्ध चाल: मान सिंह के नेतृत्व में मुगल सेना एक योजनाबद्ध दिशा में मेवाड़ के सैनिकों की ओर बढ़ी, जो हल्दीघाटी के निकट गोगुन्दा में सुरक्षा की तैयारी कर रहे थे।
.मुगलों के पास लगभग 25000 सैनिक थे जिनमें 16000 घुड़सवार, 8000 पैदल सैनिक, एक हाथी दल और तोपें शामिल थीं।

महाराणा की सेना की संरचना: महाराणा प्रताप के पास एक छोटी सेना थी, लेकिन 3000-4000 राजपूत घुड़सवार, कुछ हाथी और बिना किसी बंदूक के लेकिन बिना बंदूक लगभग ३००० भीलो को मजबूत किया था | जो इस युद्ध में बन्दूक के तुलना में धनुष बाण का प्रयोग करते थे | जो उनके लिए आसानी से काम में आता था |

महाराणा प्रताप की सेना के भीषण आक्रमण के कारण शुरुआत में कई मुगल सैनिक युद्धभूमि छोड़कर भाग गए। राजपूतों ने ऊबड़-खाबड़ इलाके का फायदा उठाया और सफल छापामार रणनीति अपनाई।

रणनीतिक वापसी और निरंतर आक्रमण: मुगल सेना के साथ बहादुरी से लड़ते हुए, महाराणा प्रताप की सेना संख्या में मुगल सेना से कम थी। हताहतों की संख्या बढ़ने पर, महाराणा प्रताप ने और अधिक नुकसान से बचने के लिए रणनीतिक रूप से पीछे हटना शुरू कर दिया।

हल्दीघाटी का युद्ध किस नदी के किनारे हुआ ?

हल्दीघाटी का युद्ध हल्दीघाटी में ही क्यों हुवा(Why did the battle of Haldighati take place in Haldighati itself?)-:

हल्दीघाटी का नाम यहाँ की चट्टानों के कारण पड़ा, जो कुचलने पर हल्दी जैसा पीला रंग देती थीं।और हल्दीघाटी बनास नदी के किनारे पड़ता था | और इसके  दर्रे में पहाड़ी इलाका, कंटीली झाड़ियाँ और कई पेड़ थे, जो महाराणा प्रताप के सैनिकों के लिए आवश्यक सुरक्षा प्रदान करते थे। इस क्षेत्र ने महाराणा प्रताप की सेना को मुगल सेना पर सामरिक बढ़त प्रदान की। हल्दीघाटी का क्षेत्र हार की स्थिति में महाराणा प्रताप की सेना के लिए आसान निकास द्वार भी प्रदान करता था। इस जगह से भली भाति परिचित थे मेवाड़ी सेना और भील लोग क्योकि यह इनके लिए गुप्त मार्ग से कम नहीं था |

हल्दीघाटी का युद्ध किसने जीता था ?

हल्दीघाटी युद्ध का परिणाम(Result of Haldighati battle)-:

हल्दीघाटी युद्ध में बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप में हुवा, जिसके कारण राणा प्रताप दक्षिणी मेवाड़ की पहाड़ियों में पीछे हट गए। इससे मेवाड़ से गुजरात तक मुगल साम्राज्य का महत्वपूर्ण मार्ग सुरक्षित हो गया। अकबर को युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप को पकड़ने या मारने की आशंका थी, लेकिन महाराणा प्रताप के वीरतापूर्ण पलायन ने उनके सभी अनुयायियों का दिल जीत लिया। हल्दीघाटी का युद्ध अकबर के लिए कोई बड़ी जीत नहीं थी क्योंकि महाराणा प्रताप बहादुरी से लड़ते रहे, और अकबर को उन्हें हराने के लिए कई और अभियान चलाने पड़े, लेकिन वे असफल रहे।

हल्दीघाटी युद्ध का महत्त्व(Importance of Haldighati battle)-:

हल्दीघाटी का युद्ध राजपूत वीरता की गौरवशाली गाथा और अपने सिद्धांतों के लिए बलिदान की भावना का प्रतीक है। यह राजपूत शासकों की विदेशी अधीनता से लड़ने और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने की दृढ़ इच्छाशक्ति को भी दर्शाता है। इस युद्ध ने एक शक्तिशाली शत्रु का प्रतिरोध करने की रणनीति के रूप में वीरतापूर्वक युद्ध की प्रभावशीलता को उजागर किया। शिवाजी और दक्कनी सेनापति मलिक अंबर ने बाद में महाराणा प्रताप की रुक-रुक कर युद्ध करने की पद्धति को विकसित किया।
इस युद्ध में मेवाड़ी सेना और मुगलिया सेना ने जमकर भयासान युद्ध किया और इस युद्ध में इतना खून बहा की इसे रक्त तलाई भी कहा गया|

सारांश :

इस लेख में हल्दीघाटी युद्ध को बहुत ही विस्तार से व आसानी शब्दों में बताया गया है और साथ – साथ महाराणा प्रताप और अकबर की एतिहासिक कहानी प्रकाश डाला गया है |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *