शंभू राँजे से छत्रपति संभाजीराजे भोसले तक की संघर्ष पूर्ण कहानी

शंभू राँजे से छत्रपति संभाजीराजे भोसले तक की संघर्ष पूर्ण कहानी

शंभू राँजे से छत्रपति शम्भाजी राजे भोसले तक की संघर्ष से भरी कहानी को हम पढ़ते है, हम आपको सम्भूराजे के महान पराक्रम, और देश प्रेम का वर्रण करते है, हम लोग उनके पराक्रम और रास्ट्रीय प्रेम ,और हिंदीव स्वराज के लिए दिए गए प्राणदान को याद करते है|

छत्रपति संभाजी राजे भोसले

मुख्य बाते इस लेख की जिस पर आपका ध्यान केन्द्रित किया जायेगा :

पहलू (Aspect)
जन्म (Birth)
पिता (Father)
शिक्षा (Education)
राज्याभिषेक (Coronation)
प्रमुख उपलब्धि (Major Achievement)
सपना (Dream)
विश्वासघात (Betrayal)
बलिदान (Sacrifice)
उपाधि (Title)
उपाधि (Title)

छत्रपति संभाजी महाराज कोन थे ?

आइये हम आपको संभाजी कोन थे ये , किस वंस के थे तथा इनके जीवन के बारे में बताते है | छत्रपति शम्भाजी महराज एक महान शक्तिशाली मराठा के शासक हुवे,  मराठे लोग अपने राजा या महाराजा को छत्रपति कहकर पुकारते है | छत्रपति, का अर्थ है सभी को छाया देना, सभी की रक्षा करना छत्रपति कहलाता है|

शंभूराजे अपने जीवनकाल में कुल 121 युद्ध लड़े और सभी युद्ध जीते शंभूराजे, को उन महान राजाओं में गिना जाता है जैसे की प्राचीन काल के सिकंदर महान वैसे ही हमारे 16वी शताब्दी के मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति शम्भाजी राँजे भोसले जी थे |

 

छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म कब हुआ था ?

हम आपको संभाजी के जन्म के बारे में बताते है इनका जन्म कब हुआ था तथा कहा हुआ था इसके ऊपर चर्चा करते है | शंभूराजे का जन्म 14 मई 1657 ईसवी को पुरंदर के किले में छत्रपति शिवाजी महराज के घर हुवा उनकी माता का नाम सईबाई था | सईबाई छत्रपति शिवाजी महराज की पहली पत्नी थी | शम्भाजी के जन्म के ढाई साल बाद उनकी मृत्यु हो गई, शम्भाजी का लालन पोषण उनकी दादी माँ जीजाबाई ने किया|  जीजाबाई शिवाजी महराज की माता थी|

 

छत्रपति संभाजी महाराज का बचपन कैसे बीता(How did Shambhuraje spend his childhood?) ?

शंभूराजे बचपन से ही बहुत शक्तिशाली व दयालु प्रवृति के थे उन्होंने हमेशा अपने पिता, व दादाजी, दादीजी की हर बात को आज्ञा माना और हमेशा से अपने पिता जैसे बनना चाहते थे और शंभूराजे की देखभाल उनकी दादी माँ ने किया जब तक वे अपने पैरो पर खड़े व हर चीज समझने न लगे  , उनकी दादी माँ चाहती थी की छत्रपति शम्भाजी महराज भी अपने पिता की तरह बने और वो हमेशा से शिवाजी की तरह ही शंभूराजे को भी राष्ट्रप्रेम, हिंदीव स्वराज्य, धरम रक्षक, देशप्रेम, और उच्च आदर्शवादी ज्ञान दिया करती थी|

छत्रपति संभाजी महाराज की शिक्षा व उनके द्वारा लिखे गए ग्रन्थ कोन से है ? 

 

छत्रपति शम्भाजी महराज ने अपनी शिक्षा की शुरुआत तो अपनी दादी  से ही शुरू कर दी थी इसके पश्चात् उनकी शिक्षा काशीराम शास्त्री द्वारा पूरी हुई उन्होंने काशीराम द्वारा सीखे गए विषय भूगोल, गणित, इतिहास, रामायण, महाभारत आदि शीखा था| और साथ ही शारीरिक ज्ञान अपने पिता शिवाजी महराज द्वारा तलवार बाजी , धनुष बाण, आदि ज्ञान लिया था| उन्होंने 14 वर्ष की आयु में उन्होंने अनेक ग्रन्थ लिख डाले जैसे कि नायिकाभेद, नखशिख, शातशासक था बधभूषण यह तीन संस्कृत ग्रन्थ लिखे थे जिससे उन्होंने अपने ज्ञान का परिचय दिया और उनके ये ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध हुवे|

 

छत्रपति संभाजी महाराज का विवाह (Shambhaji’s marriage)-:

जिवुबाई सुर्के के साथ शम्भाजी महराज का विवाह एक राजनीतिक गठबंधन के तौर पर हुवा था इनका विवाह 1666 में हुवा था ,क्या आपको मालूम है  जिवुबाई सुर्के पिलाराव जी सुर्के की बेटी थी| विवाह के पश्चात जिवुबाई का नाम यसुबाई भोसले पड़ गया था | शादी के कुछ सालो बाद शम्भाजी और यसुबाई के योग से एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम बड़े ही प्सायार से साहू जी भोसले रखा गया था | 

इस विवाह से मराठा साम्राज्य कर्नाटक से केरल के कोंकण तक विस्तार किया  और उनका उदय इन सभी छेत्रो में हुवा , कई बार बिना युद्ध किये महाराजा शम्भाजी की जीत होती रही उनकी सेना और उनके पराक्रम से  सारे राजा मराठा की सेना में शामिल होने लगे |

 

छत्रपति संभाजी महाराज का राज्याभिषेक कब हुवा था  ?

छत्रपति शम्भाजी महराज का राज्याभिषेक
छत्रपति संभाजी महाराज का राज्याभिषेक

 

क्या आपको मालूम है की ,  शम्भाजी का राज्याभिषेक छत्रपति शिवाजी के मृत्यु के तीन महीने बाद हुई थी | शम्भाजी की सौतेली माँ सोयराबाई महराज शिवाजी से चाहती थी कि आपके बाद मेरा पुत्र राजाराम भोसले मराठा की गद्दी पर बैठे पर ऐसा नहीं हुवा क्योकि वहा की प्रजा शम्भाजी को राजा बनना देखना चाहती थी|

शम्भाजी का राज्याभिषेक 20 जुलाई 1680 को हिन्दू परम्पराओ और खूब धूमधाम से छत्रपति की गद्दी शम्भाली और छत्रपति बनते ही उन्होंने “शककर्ता” और हिन्दवी धर्मोधारक धारण किया और राजा बनते उन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन करना शुरू कर दिया और अपनी प्रजा के लिए राशन, औषधिया, जरुरत की समग्री सब मुफ्त में कर दी और सबका ख्याल रखना शुरू कर दिया इन सब सामानों के उनको बहुत सारा खजाना की जरुरत थी इसके लिए उन्होंने औरंगजेब के खजानों को लूटा और प्रजा में बाँट दिया|

 

 

छत्रपति संभाजी महाराज के युद्ध-:

छत्रपति शम्भाजी महराज ने 121 युद्ध लड़े जिसमे से सारे युद्ध जीते , उन्होंने 16 वर्ष की उम्र मे रामनगर को जीता था और उनको युद्ध कौशल का ज्ञान बहुत ही कम उम्न में होने लगा क्योकि वे अपने पिता जी से युद्ध कौशल सीखा करते  थे और अपनी युद्ध कला में भी निपुण थे और इसी कारण उनकी  प्रजा का झुकाव उनकी तरफ था |   

उन्होंने राजा बनने के बाद 1680 में औरंगजेब के कई खजानों में से खानदेश सुभा की राजधानी बुरहानपुर पर अपने सैनिको और सरदारों के साथ मिलकर हमला किया , और वहा पर एक बहुत ही खुंखार शेर से भी लड़ना पड़ा, और उस शेर को बुरहानपुर में ही हराया जिससे मुगलिया सैनिक के अन्दर डर पैदा हो गया और इस युद्ध में उन्होंने अपनी मराठा सैनिक के साथ बहुत ही कुशलता से बुरहानपुर का युद्ध जीता, और वहा का सारा खजाना लूट कर अपनी प्रजा में बाँट दिया |

दूसरा आक्रमण मैसूर (The second invasion Mysore)-;

खानदेश बुरहानपुर को हराकर उन्होंने मैसूर पर आक्रमण किया यह आक्रमण सन  1681 ईसवी में वोडियार राजवंश के खिलाफ था वोडियार राजवंश के शासक चिक्क्देवराय ने आत्मसमर्पण करने को मना कर दिया कयोकि वे बहुत हि घमन्डी राजा थे उन्होंने महराजा शम्भाजी के सामने झुकने से मना कर दिया था और मराठा सेना पर हमला बोल दिया इससे शम्भाजी को खेद पहुंचा और युद्ध शुरू हुवा और युद्ध को मराठा सेना ने जीत लिया राजा चिक्क देवराय को म्रत्युदंड दिया और उनकी सेना को मराठा सेना में शामिल कर दिया और उनकी सेना बढती गई और उन्होंने कई युद्ध मैसूर के रास्ते ही जीते

 

छत्रपति संभाजी महाराज ने पुर्तगालियो को हराया(Shambhaj defeated the purtagaliyo)-:

शम्भाजी पुर्तगालियो आफिसरों को म्रत्युदंड दिया क्योकि पुर्तगालियो मुगलों को अपने रास्ते से युद्ध करने जाने देते थे और उनका साथ देते थे और प्रजा को तंग करते थे जिससे साम्राज्य में अशांति बनी रहती है और इसी कारण पुर्तगालियो आफिसरो को म्रत्युदंड दिया|

 

छत्रपति संभाजी महाराज का सपना(dream of Shambhaji Maharaj)-:

छत्रपति शम्भाजी महराज का सपना था कि मुगलों, और पुर्तगालियो को भारत से खेदने का या भगा देने का था वे चाहते थे कि एक दिन मराठा और पुर्तगालियो को युद्ध में हराकर उनको भारत से बाहर कर दिया जाये उनके किलो और उनके स्थानों पर कब्ज़ा करके सारा खजाना भारत के लोगों में बाँट दिया जाये और भारत के लोगो का धन भारत के पास ही रहे ऐसा हमारे मराठा के छत्रपति शम्भाजी और उनके पिता शिवाजी महाराज चाहते थे और अपने पिता का सपना और अपना सपना पूरा करना चाहा |

 

छत्रपति संभाजी महाराज की गुप्त बैठक(secret meeting of Shambhaji Maharaj)-:

शम्भाजी महराज ने एक योजना बनाई थी जिसका उद्देश्य मुगलों को उखाड़ फेखना था इसके कारण उन्होंने एक गुप्त बैठक की जिसमे उनके मित्र और मराठा सरदार अमन्त्रतित थे और उनके बहनोई गनोजी सिर्के भी थे गनोजी ने मराठो में साथ विश्वासघात किया इसके पीछे का कारण था कि शम्भाजी ने वतन दारी और जहाँगीरी देने से मना कर दिया इसी से गनोजी ने मराठो और छत्रपति शम्भाजी के साथ छल किया और संगमेश्वर गुप्त बैठक के बारे में मुगलों के बादशाह औरंगजेब को बता दिया और उनसे हाथ मिला लिया जिससे छत्रपति और उनके मित्र व सरदारों को आघात पहुंचा| शम्भाजी और उनके सरदारों को जंगलों के गुप्त रास्तों के बारे में पता था और किसी भी मुगल को इन गुप्त मारगो के बारे मे पता नहीं था और शम्भाजी और उनके सैनिक इसी का फायदा लेना चाहते थे पर सारी योजना पर गनोजी ने पानी फेर दिया और उसने मुगलों की सेना में से  20000 हजार सैनिक लेकर संगमेश्वर को ले आया और अचानक शम्भाजी महराज के ऊपर हमला कर दिया मराठो के पास 200 सैनिक और कुछ सरदार थे शम्भाजी के मित्र कलश भी शामिल थे और मराठो ने मुगलों की सेना से बहुत संघर्ष किया वहाँ पर युध करते -करते  रक्त की तालाब बना दिया और सभी मराठे मारे गए और उसमें छत्रपति शम्भाजी महराज और उनके मित्र कलश को बंदी बना लिया गया|

 

छत्रपति संभाजी महाराज और मित्र के साथ दुर्व्यवहार(mistreatment of Chatrapati Shambhaji and his friend)-:


छत्रपति शम्भाजी और मित्र के साथ दुर्व्यवहार

सबसे पहले मुगलों सेना और जुल्फ कार खान सेना के साथ शम्भाजी और उनके मित्र कवि कलश को कराड-बारामती के रास्ते उनको बहादुर गढ़ ले गए और उनके साथ बहुत दर्दनाक व्यव्हार करने बाद अंतिम दिनों उनको तुलापुर जो त्रिवेणी संगम पर स्तिथ है वहा ले जाया गया शम्भाजी और कलश के साथ बहुत ही मजाकिया तरीके से कपडे उतारकर जोकरों के कपडे पहनकर गधो पर बैठाया गया और उनके साथ बहुत अलग- अलग तरीके से मजाक उड़ाया गया|

इससे मुग़ल बादशाह संतुष्ट न होने पर शंभूराजे और कलश के ऊपर कोड़ो से मरवाया और शम्भाजी राजे के सामने तीन सरते रखी

  1. इस्लाम कबूल कर लो
  2. अपने आप को हमारे सामने नतमस्तक करो और सारा खजाना और सरे किले पर हमें राज्य करने दो
  3.  और तुम्हारे साथ कौन कौन हमारे यहाँ के अधिकारी थे उनका नाम बता दो

औरंगजेब ने शरतो को मनवाने के लिए छत्रपति शम्भाजी महराजऔर उनके मित्रो के साथ दर्दनाक तरीके से हाथो के नाखुन को मुगल सैनिक नोचने लगे और इसके बाद शरीर की खाल भी छील दाला और शम्भाजी और उनके मित्र कलश जय जगदम्बा जय जगदम्बा नाम लेकर दर्द को कम करते  रहे  औरंगजेब ने उसके बाद शाम्भाजी और कलश केआँखे को   गरम शमशो से निकाल ली इसके बाद भी औरंगजेब के शर्त न मानने पर छत्रपति शम्भाजी महराजऔर कलश के जिह्वा काटने का आदेश दे दिया फिर भी दोनों ने नतमस्तक नहीं हुवे इसके पश्चात् औरंगजेब ने सर धर से अलग करने को कहा और दोनों शरीर के भागों को मुग़ल सैनिक ने भीमा नदी में फेंक दिया पर शम्भाजी और उनके मितर ने मुगलों के सामने नतमसतक नहीं हुये 

मराठो के यही आत्मविश्वास के कारण हिंदुवो राजा और मराठो सैनिक ने मुगलों को भारत से ही नहीं बल्कि मुगलों का नाम मिटा दिया आज हम लोग छत्रपति शम्भाजी को वीरता और आत्मविश्वास के कारण याद करते है उनको धर्मवीर की उपाधि भी दी गई|

 

सारांश : 

इस लेख मे हम आपको

छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन के बारे मे बिलकुल हि आसान तरिके से बताया गया है इसमे मराठो के संघर्ष का वररन है | 

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