”भगत सिंह की जीवनी : स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद की कहानी”

”भगत सिंह की जीवनी : स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद की कहानी”

भगत सिंह
भगत सिंह

भगत सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के महान शक्तिशाली सेनानी थे। भगत सिंह कम उम्र में ही स्वतंत्रता सेनानी बन गए। और भगत सिंह देश की क्रांति के लिए नौजवान सभा की स्थापना की । इस सभा में भारत को ब्रिटिशों के खिलाफ खड़े होकर उनको खत्म करना था ।
भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर को एक सिख परिवार में हुआ था । भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह था। और माता का नाम विद्यावती कौर था।

भगत सिंह की जन्मभूमि :

भगत सिंह के जन्म भूमि बंगा गांव पंजाब प्रान्त पाकिस्तान में है । या गांव देश आजाद होने से पहले भारत में ही था। क्योंकि बाद में गांधी जी के नेतृत्व में देश का बंटवारा हुआ। एक और हिंदुस्तान और दूसरी और पाकिस्तान के नाम से देश का बंटवारा हुआ।

भगत सिंह की शिक्षा:

भगत सिंह की शिक्षा लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे । उनके पढ़ाई के दौरान 13 अप्रैल 1919 को जालिया वाला बाग हत्याकांड जो की अमृतसर में हुआ था |  यह सब देखकर उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी |  और उन्होंने संकल्प लिया कि हमें स्वतंत्रता सेनानी और एक क्रांतिकारी बनना है | इस देश के समाज के लोगों की रक्षा कर सके | और ब्रिटिश के खिलाफ और ब्रिटिश के खिलाफ लड़ कर देश की क्रांति ला  सके।

अपनी शिक्षा को अधूरा छोड़कर उन्होंने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की वर्ष 1922 में चोरी चौरा हत्याकांड के बाद गांधी जी ने जब किसानों का साथ नहीं दिया तब भगत सिंह बहुत उदास में और उन्होंने अहिंसा का मार्ग छोड़कर हिंसा का मार्ग अपनाया और उन्होंने कहा कि देश की आजादी क्रांति लाने से मिलेगी अहिंसा से हमें लगता नहीं मिलेगी परंतु उन्होंने महात्मा गांधी जी का सम्मान करना ना भूले जैसे देश के सभी लोग महात्मा गांधी जी का सम्मान करते थे वैसे ही भगत सिंह जी महात्मा गांधी के सम्मान करते थे क्योंकि महात्मा गांधी विभिन्न आंदोलनों और नमक के लिए आंदोलन चंपारण आंदोलन जैसे कार्यों में किसानों का साथ दिया देश के आजादी के लिए सबसे महत्वपूर्ण अहिंसावादी व्यक्ति महात्मा गांधी थे इसलिए महात्मा गांधी को भारत का राष्ट्रपिता कहा जाता है।

भगत सिंह किस गैंग में शामिल हुए?

भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में आए और उसी उसे समय चंद्रशेखर आजाद के गायन का गैंग का नाम गदर डाल चल रहा था और भगत सिंह इस गदर दल के हिस्सेदार बने।
जब काकोरी कांड हुआ तो उसे कांड में राम प्रसाद बिस्मिल्लाह सहित 4 क्रांतिकारी सेनानियों को फांसी व 16 क्रांतिकारी और सेनानियों को कारागार सजा सुनाई गई। इससे भगत सिंह को खेद पहुंचा। खेत और उन्होंने संकल्प लिया कि हम ब्रिटिशों को खत्म करेंगे उनके उनके लिए हिंसा का मार्ग अपनाएंगे और क्रांति की भावना लगाएंगे इसलिए उन्होंने चंद्रशेखर आजाद ने हिंदुस्तान पब्लिक संगठन की स्थापना की थी। और इस गैंग में भगत सिंह भी शामिल हुए थे। जब भगत सिंह उसे गैंग में आए तो उन्होंने उसे गैंग का नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन मतलब हिंदुस्तान समाजवादी गणतंत्र वादी संगठन। इस संगठन में वही युवा जोड़ रहे थे जो घर का त्याग करते थे जो पीड़ा खेल सकते थे और उनको एक ही संकल्प दिलाया जाता था कि उन्हें ब्रिटिश के खिलाफ खड़े होना है और समाज सेवा करना है देश की रक्षा करना है और देश को क्रांति दिलाना है और इस गैंग में सभी नवयुवक शामिल हुए थे।

 

भगत सिंह किस ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या की थी?

भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 18 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक की पोस्ट पर उपस्थित अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स को भगत सिंह और राजगुरु ने मिलकर मारा था। इस हत्या का साथ चंद्रशेखर आजाद की पूरी सहायता से भगत सिंह और राजगुरु ने जेपी संडास को गोली मार के हत्या की। जब जेपी संडास की हत्या हुई तब वहीं पर उपस्थित सिपाही चानन सिंह भी था उसने भगत सिंह और राजगुरु के का पीछा करना शुरू किया तभी उसके पीछे चंद्रशेखर आजाद जी उपस्थित है उन्होंने कहा अगर आप पीछा करेंगे तो आपको गोली मार दूंगा परंतु चरण सिंह नहीं मारा तो चंद्रशेखर आजाद ने चरण सिंह को गोली मार दिया।
भगत सिंह और राजगुरु ने ब्रिटिश अधिकारी को इसलिए मारा था क्योंकि जब साइमन कमीशन के बहिष्कार में लाला लाजपत राय आगे बढ़े तब ब्रिटिश शासन ने लाठी चार्ज किया इस लाठी चार्ज से आहत होकर लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई और इसी का भगत सिंह और उनकी गांड हिंदुस्तान सामाजिक गणतंत्र संगठन ने बदला लिया और उसे ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी सांडर्स को मृत्यु के घाट उतार दिया।

भगत सिंह ने दिल्ली के संसद भवन के सभागार में बम क्यों फेंका?

भगत सिंह रक्त पाठ के पाचन नहीं परंतु उन्होंने देश के क्रांति के लिए रक्तपात कुछ ना और हिंसा बने उनका कहना था कि ब्रिटिशों को अहिंसा बात से नहीं समझाया जा सकता उनके लिए गोली बारूद ही मायने रखते हैं।
इसलिए उन्होंने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने वर्तमान नई दिल्ली जो कि भारत की राजधानी है स्थित ब्रिटिश भारत के तत्कालीन केंद्रीय असेंबली को सभागार कहते हैं। इसी सभागार के संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को संसद के सभागार में बम फेंका पर उसने वहां कोई मौजूद नहीं था पूरा संसद का सभागार आत्मा से भर गया था। भगत सिंह चाहते थे कि वह उनकी गिरफ्तारी हो और दोनों ने अपनी गिरफ्तारी कार्रवाई उसे दिन वह खाकी और कमीज पहने हुए थे जैसे ही बम फटा उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्य मुर्दाबाद का नारा लगाया। भगत सिंह चाहते तो चाहते तो वहां से भाग सकते थे परंतु उन दोनों ने भागना पसंद नहीं किया और जेल जाना सतपाल किया और अपनी गिरफ्तारी करवा ली। गिरफ्तारी करवाते ही इंकलाब जिंदाबाद सम्राट मुर्दाबाद का नारा लगाते रहे। और इंकलाब जिंदाबाद का नारा भगत सिंह ने ही दिया था। या नारा आज भी स्वतंत्रता दिवस के दिन याद किया जाता है और यह नारा लगाया जाता है।

भगत सिंह के जेल के दिन कैसे थे?

भगत सिंह जेल में करीब 2 साल तक रहे इस दौरान उन्होंने बहुत सारे लेख लिखें और अपने लेख से क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहते थे जेल में रहते हुए भी उनकी पढ़ाई लगातार जारी रहा और इस दौरान उन्होंने बहुत सारे लेख लिख डाले। वह लेख देश की क्रांतिकारी से जुड़े हुए हैं आज विवेक उनके होने का प्रमाण देते हैं और देश के नायक कहलाते हैं।

19वीं सदी के भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद राजगुरु जैसे स्वतंत्रता सेनानी नायक थे। हिंदुस्तान समाजवादी गणतंत्र संगठन से जुड़े सभी सेनानियों भारत के नायक हीरो हैं जो ब्रिटिश के खिलाफ संघर्ष किए हैं खड़े में और फांसी के फंदे पर चढ़े परंतु चीज नहीं बस इंकलाब जिंदा बाद हिंदुस्तान जिंदा बाद साम्राज्य मुर्दा बाद का नारा लगाते रहे ब्रिटिश को अपने इन्हीं तारों से अपने साहस से अपने अंदर की आत्मा से डराते रहे।
अपनी लेख में लिखा था कि मजदूरों का जो भी शोषण करेगा। सोशल करने वाला चाहे एक भारतीय ही क्यों ना हो वह मेरा शत्रु होगा मेरे संगठन का शत्रु होगा।
भगत सिंह जब जेल में थे उन्होंने एक अंग्रेजी में लेख लिखा जिसका शीर्षक था। मैं नास्तिक क्यों हूं?
जेल में भगत सिंह और उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूत की हड़ताल की इनके एक साथी क्रांतिकारी यतेंद्र नाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण त्याग दिए थे। और उन्होंने अपनी साहस अपनी ताकत अंग्रेजों के सामने प्रस्तुत किया।

23 मार्च 1931 को क्या हुआ था?

भगत सिंह और उनके साथियों को 26 अगस्त 1930 को अदालत में भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ फोड़ने के कारण विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6f  तथा IPC की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी को फांसी के लिए घोषित किया।
7 अक्टूबर 1930 को अदालत में निर्णय लिया। जिसमें भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारी सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। परंतु फांसी की सजा सुनाया जाने के साथ ही धारा 144 लाहौर में लगा दी गई। इसके बाद भगत सिंह की फांसी की माफी के लिए प्रिवी परिषद अपील था की गई थी लेकिन यह अप अल 10 जनवरी 1931 के दिन आजाद कर दी गई। परंतु कांग्रेस के अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय ने वायसराय के सामने सजा माफी के लिए उन्होंने 14 जनवरी 1931 को फिर अपील दायर की वह अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मानवता के आधार पर भगत सिंह और तथा उनके साथियों को हंसी की सजा माफ कर दे। परंतु पंडित मदन मोहन मालवीय जी की वायसराय ने विनती नहीं सुनी। इसके बाद महात्मा गांधी ने 17 फरवरी 1931 को वायसराय से बात फिर 18 फरवरी 1931 को आम जनता की ओर से भी महात्मा गांधी ने वायसराय के सामने भगत सिंह तथा उनके साथियों को फांसी की सजा माफ करवाने के लिए उन्होंने कई तरह के तर्क भेजिए परंतु ऐसा वायसराय ने नहीं किया। भगत सिंह खुद नहीं चाहते थे कि फांसी की सजा माफ कर दिया जाए वह चाहते थे कि उनको फांसी की सजा दी जाए और वह फांसी की सजा हम घर से तारों के साथ इंकलाब जिंदा बाद सम्राट मुर्दा बाद ब्रिटिश मुर्दा बाद नारे लगाकर फांसी के फंदे पर लटके।

23 मार्च 1921 के दिन शाम को करीब 7:35 पर भगत सिंह तथा उनके साथियों सुखदेव महाराज गुरु जैसे क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी और हिंदुस्तान समाजवादी गणतंत्र संगठन के नायक हीरो को फांसी दे दी गई। जब भगत सिंह से उनकी आखिरी अच्छा पूछी गई तो भगत सिंह ने कहा कि मुझे लेनिन की जीवनी पढ़ने का समय दिया जाए जब वह लेनिन की जीवनी पढ़ दिन तो उन्होंने जेल के अधिकारियों से कहा कि अब मेरे फांसी का समय आ गया है। परंतु पहले रुक जाइए जब एक क्रांतिकारी सेनानी अपने संगठन के लोगों से मिलने कुछ बात कर लेने का समय दे दीजिए। फांसी पर तीनों क्रांतिकारी सेनानी चढ़ाने जा रहे थे तो तीनों मस्ती में देश भक्ति गाना गा रहे थे। वह गाना था|

“मेरा रंग दे  बसंती चोला, मेरा रंग दे।
मेरा रंग दे बसंती चोला। माय रंग दे बसंती चोला।।

जब तीनों क्रांतिकारियों की फांसी हो गई तो अंग्रेज बोले कहीं उनके लिए आंदोलन ना हो जाए तो इन तीनों क्रांतिकारियों को काटकर बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गए जहां उनका घी के बदले मिट्टी के तेल डालकर उनका जलाया गया। तीनों की लाश जल रही थी तो गांव वाले कुछ जलकर देखने आए थे तब तक उनकी लाश आदि जल गई थी और तीनों के लाशों को बोरियों में भरकर सतलज नदी में फेंका और अंग्रेज वहां से भाग निकले। परंतु इन तीनों के मृत शरीर को गांव वाले एकत्रित करके गांव की परंपरा और दाह संस्कार की परंपरा का पालन करते हुए तीनों का दाह संस्कार किया। और भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु सुखदेव के नारे गांव वाले लगने लगे। उन्हों में भगत सिंह अमर रहे हैं राजगुरु अमर रहे सुखदेव अमर जैसे नारे का गांव वाले लगने लगे। परंतु लाहौर के गांव वाले अंग्रेजों के साथ महात्मा गांधी जी को भी भगत सिंह और उनके साथियों के मृत्यु का कारण समझते थे। जब लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था तो उसमें गांधी जी शामिल हुए थे ।तभी लाहौर के वासी गांधी जी का स्वागत काले झंडे से किया और गांधी जी पर हमला बोल दिया। परंतु वहां पर मौजूद शादी वर्दी में उपस्थित पुलिस ने गांधी जी को बचा लिया।

भगत सिंह का व्यक्तित्व:

भगत सिंह जेल के दौरान उन्होंने अपने व्यक्तित्व का परिचय दिया। उनके द्वारा लिखे लेख मैं उनके विचारों का अंदाजा लगाया जा सकता है उन्होंने भारतीय समाज में लिपि पंजाबी हिंदी और उर्दू एवं अरबी के संदर्भ में विशेष रूप से उनके द्वारा लिखे गए थे। उन्होंने देश में जाट और धर्म के कारण आई दूरियों पर दुख व्यक्त किया था। उन्होंने समाज में उपस्थित उन सभी निचले वर्ग पैर होते अत्याचार को इस दृष्टि से देखा जिस दृष्टि से अंग्रेज भारतीयों पर अत्याचार कर रहे थे।
भगत सिंह को कई भाषाओं का ज्ञान था। भगत सिंह हिंदी उर्दू पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भाषा भी सीख ली थी। यह भाषा उन्होंने क्रांतिकारी सेनानी बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी।
उन्होंने सोचा था कि मेरी शहादत देश के लोगों को गौर वंचित करेगी। जैसे मुगलों से संघर्ष करने वाले मराठा के छत्रपति शिवाजी संभाजी और मेवाड़ के राणा प्रताप जैसे लोगों ने किया था। इन सब महान पुरुषों ने हल्दीघाटी और पानीपत की लड़ाई लड़ी थी। जिससे भारतीय लोगों में साहस ताकत की भावना जागृत हुई और मुगलों को भारत से बाहर निकाल दिए ।
इन्हीं सब बातों को सोचकर भगत सिंह और उनके साथियों ने फांसी देना स्वीकार लिया जिससे भारत के लोगों में एकता और साहस की भावना उत्पन्न हो जाए। और और ब्रिटिश के खिलाफ सभी लोग एकजुट होकर खड़े होकर हिंसा करें और ब्रिटिश को भारत से खेद दे।

भगत सिंह के मृत्यु के बाद क्या हुआ था ?

भगत सिंह की मृत्यु के खबर को लाहौर के दैनिक ट्यूबून तथा न्यूयॉर्क के एक पत्र डेली वर्कर ने छापा। उनकी मृत्यु के बाद देश भर में उनके और उनकी साथियों को शहीदों के रूप में याद किया गया। और उनको भारत का 19वीं सदी के नायक हीरो के रूप में माना गया।
भगत सिंह की शहादत को आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता भगत सिंह और उनके साथियों को आजादी के दीवाने के रूप में देखती है । जिसने अपनी सारी जवानी देश की सेवा में लगा दी समर्पित कर दी ।

भगत सिंह को प्रेम किससे हुआ था?

भगत सिंह को प्रेम तो अपने देश से था। परंतु उनको जब लाहौर में हुए कांड से भागना पड़ा था। तब उनको दुर्गावती नाम की महिला ने उनके साथ दिया। तभी भगत सिंह को दुर्गावती से प्रेम का बोध होने लगा और अपना कुछ क्षण वहां बिताए। परंतु देश के प्रेम के आगे दुर्गावती का प्रेम भगत सिंह को काम लगा। और देश की सेवा में अपनी जवानी देश को समर्पित कर दी।

निष्कर्ष:

भगत सिंह को 19वीं सदी का नायक कहा जाता है। क्योंकि नायक बनने के लिए उन्होंने बहुत कठिन संघर्ष किया। उनके संघर्ष में हिंदुस्तान समाजवादी गणतंत्र संगठन के युवा सेनानी सभी नायक हैं। भगत सिंह के साथ फांसी पर चढ़े राजगुरु सुखदेव आज स्वतंत्रता सेनानी भारत के हीरो कहे जाते हैं। भगत सिंह ने अपनी जवानी अपनी शिक्षा त्याग सब देश को समर्पित किया आज उनको उनके जन्मदिन पर तथा उनके फांसी वाले दिन को भी याद करते हैं। तथा उनके साथ देश में ब्रिटिशों द्वारा अत्याचार को भी समझते हैं। और उनके साथ सभी स्वतंत्रता सेनानी को याद करते हैं।

सारांश:

इस लेख में भगत सिंह के जीवन पर प्रकाश डाला गया है। और उनके साथ उनके साथियों द्वारा देश के लिए दिए गए प्राण को भी याद किया जाता है। इस लेख में भगत सिंह की पूरी कहानी का सरल शब्दों में वर्णन किया गया है। जिससे आपको समझने में आसुविधा न हो।

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